डॉ. क्षमा कौल जी का शिव-तत्व पर व्याख्यान देते हुए
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भारतीय परंपरा में शिव-तत्व: एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी

 

भारतीय परंपरा में शिव-तत्व का महत्व

2 दिसंबर को हमने ‘चुभन’ के पटल पर वर्चुअल माध्यम से एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया, जिसमें देश-विदेश से विद्वद्जन उपस्थित हुए और “भारतीय परंपरा में शिव-तत्व”, इस विषय पर एक सार्थक संवाद हुआ। इस कार्यक्रम के बारे में पूर्व भूमिका मैं चुभन पॉडकास्ट के पिछले एपिसोड में प्रस्तुत कर चुकी हूं। भारतीय परंपरा में शिव-तत्व पर इस संवाद का उद्देश्य भारतीय संस्कृति और शैव दर्शन की गहराई को समझना था।

पूरे कार्यक्रम को ऊपर वीडियो में सुने ।

भारतीय परंपरा में शिव-तत्व: क्षमा कौल जी का योगदान

मुख्य वक्ता के तौर पर जम्मू-कश्मीर की विदुषी लेखिका और शैव-दर्शन की गहन अध्येता डॉ. क्षमा कौल जी ने “भारतीय परंपरा में शिव-तत्व” की व्याख्या करते हुए कहा कि भारतीय परंपरा ही शिव-तत्व है।

तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा जी के हाथों सम्मानित होते हुए।

रावण का या दुष्ट का संहार तुरंत करना होगा, इस विचार को आज की परिस्थितियों से जोड़ते हुए उन्होंने इसे प्रासंगिक बनाया। आचार्य अभिनवगुप्त के ‘तंत्रालोक’ के आठों खंडों की अधिकारी विद्वान के व्याख्यान से हम यही अपेक्षा भी रखते हैं।

मृदुल कीर्ति जी का आर्ष ग्रंथों पर योगदान

डॉ. मृदुल कीर्ति जी, जिनका आर्ष ग्रंथों पर गहन अध्ययन है, ने “भारतीय परंपरा में शिव-तत्व” पर अपने विचार साझा किए।

उन्होंने पतंजलि योग दर्शन, सांख्ययोग दर्शन, सामवेद, ईशादि नौ उपनिषदों, श्रीमद्भगवद्गीता, अष्टावक्र गीता, विवेक चूड़ामणि आदि ग्रंथों का हिंदी काव्यानुवाद किया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने मृदुल कीर्ति जी की पुस्तक का विमोचन करते हुए उनके योगदान की सराहना की। उनके काव्यानुवाद ने भारतीय साहित्य और संस्कृति को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है।

 

भारतीय परंपरा में शिव-तत्व:संगोष्ठी में अन्य विद्वद्जनों का योगदान

स्वामी ज्ञानेश्वर पुरी जी, कमल राजपूत जी, डॉ. प्रेम तन्मय जी, डॉ. स्वर्ण ज्योति जी, और डॉ. इंदु झुनझुनवाला जी ने भी “भारतीय परंपरा में शिव-तत्व” पर अपने विचार प्रस्तुत किए। इनके अतिरिक्त, शबिस्ता बृजेश जी, जो एक लोकप्रिय कवयित्री, विचारक, समीक्षक और चिंतक हैं, डॉ. चंपा श्रीवास्तव जी, जो डिग्री कॉलेज में प्रिंसिपल के पद पर रहीं, राजा अभिषेक राय जी, जिनका स्वयं शैव-दर्शन पर गहन अध्ययन है, शशिकांत शर्मा जी, जो न्यू स्टैण्डर्ड ग्रुप ऑफ स्कूल के चेयरमैन हैं, और रामेंद्र सिंह जी, लखनऊ दूरदर्शन डी डी न्यूज़ के संपादक, ने भी इस संवाद को और भी रोचक और प्रासंगिक बनाने में अपना पूरा सहयोग दिया। रामेंद्र सिंह जी का विशेष रूप से आभार व्यक्त करना चाहूंगी, जिनके अपने कार्यक्रम ऑन एयर थे, पर आपने इन विद्वान वक्ताओं को सुनने के लिए अपना समय निकाला और पूरा टाइम इस संगोष्ठी में उपस्थित रहे।

 

भारतीय परंपरा में शिव-तत्व: भविष्य की दिशा

भारतीय परंपरा में शिव-तत्व को समझने और अपनाने से हम अपने सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को संरक्षित कर सकते हैं। इस संगोष्ठी में विद्वद्जनों ने इस विषय पर गहन विचार-विमर्श किया और इसे समाज में अधिक प्रसारित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। भारतीय परंपरा में शिव-तत्व की गहराई और इसकी व्यापकता को समझना आवश्यक है ताकि हम अपने भविष्य को एक मजबूत सांस्कृतिक नींव पर स्थापित कर सकें। भारतीय परंपरा और शिव-तत्व के प्रति यह जागरूकता समाज के हर वर्ग में फैलनी चाहिए, जिससे हमारी संस्कृति और परंपराएं संरक्षित रहें।

 

भारतीय परंपरा में शिव-तत्व :शैव दर्शन के विभिन्न पहलू

भारतीय परंपरा में शिव-तत्व के अंतर्गत शैव दर्शन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा हुई। शैव दर्शन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा तंत्रालोक है, जिसे आचार्य अभिनवगुप्त ने लिखा है। इस ग्रंथ में शिव-तत्व की गहन व्याख्या की गई है। शैव दर्शन के अध्ययन से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि शिव-तत्व न केवल एक धार्मिक अवधारणा है, बल्कि यह जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। शैव दर्शन के माध्यम से व्यक्ति आत्मज्ञान और मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

 

 

निष्कर्ष

इस संगोष्ठी के माध्यम से भारतीय परंपरा में शिव-तत्व को लेकर जो विचार और संवाद हुआ, उसने हमें हमारी संस्कृति और दर्शन के प्रति और अधिक जागरूक बनाया। इस आयोजन में शामिल सभी विद्वद्जनों और सहभागियों का धन्यवाद और साधुवाद।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के साथ मृदुल कीर्ति जी।

भविष्य में भी हम ऐसे आयोजन करते रहेंगे और भारतीय परंपरा में शिव-तत्व की महत्ता को समझने का प्रयास करेंगे। भारतीय परंपरा में शिव-तत्व को अपनाकर हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं और अपने समाज को एक नई दिशा दे सकते हैं।

 

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