“चुभन” पर शुरू से ही हमारा प्रयास
“चुभन” पर शुरू से ही हमारा प्रयास रहा है कि कुछ अलग हटकर, ज्ञानवर्धक और मनोरंजक कार्यक्रमों को प्रस्तुत किया जाए। हमारे अवध प्रान्त की भूमि इतनी पवित्र, इतनी पावन रही कि इसमें एक से बढ़कर एक नगीने पैदा होते रहे और अपने हुनर से उन्होंने न सिर्फ अवध की भूमि, वरन पूरे देश का नाम रोशन किया।
अवध प्रान्त की रियासतें
आज हम अवध प्रान्त की जो रियासतें हैं, उनपर कार्यक्रम प्रस्तुत करने जा रहे हैं और आज से हमारा प्रयास होगा कि एक एक कर हर रियासत से हम आपका परिचय करवाएं। इस कड़ी का आरंभ हम अमेठी जिले की तिलोई रियासत से कर रहे हैं। यह का सांस्कृतिक, साहित्यिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत ही महत्वपूर्ण है।
तिलोई महल और जायस कस्बा
तिलोई महल और वहां से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जायस जाकर हमने आपके लिए जो जानकारी एकत्र की, उसे इस वीडियो में देखें। यह का सांस्कृतिक, साहित्यिक और आध्यात्मिक महत्व को समझने के लिए जायस कस्बा, जिसकी तिलोई से दूरी 17 किलोमीटर है, वह विश्व प्रसिद्ध सूफी कवि मलिक मोहम्मद जायसी की भूमि के रूप में तो जाना ही जाता है, उनके साथ गुरु गोरखनाथ जी की तपोभूमि के रूप में भी इसे माना जाता है। यहां एक नवगजी कब्र भी है, जिसके कारण भी इस कस्बे को जाना जाता है।
नवगजी कब्र (जायस)
यह रियासत सैकड़ों वर्ष पुरानी है। कनपुरिया ठाकुरों की रियासत है। 1962 में राजा पशुपतिनाथ शरण सिंह जी तिलोई के राजा थे। उनके बाद छोटे भाई राजा बहादुर, मोहन सिंह जी कई बार विधायक बने और राज्यसभा सांसद रहे। आप सिंचाई आयोग के अध्यक्ष भी रहे। वर्तमान में राजा मयंकेश्वर शरण सिंह जी पांच बार के विधायक और उत्तर प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री हैं। यह का सांस्कृतिक, साहित्यिक और आध्यात्मिक महत्व यहां के राजाओं के योगदान से भी देखा जा सकता है।
चुभन कार्यक्रम और तिलोई रियासत
“चुभन” के माध्यम से हम देश-विदेश के विद्वद्जनों को जोड़कर एक मुहिम चलाना चाहते हैं, जिससे यह सब बातें आगे नई पीढ़ियों तक जाएं। यह का सांस्कृतिक, साहित्यिक और आध्यात्मिक महत्व नई पीढ़ियों तक पहुँचाने के लिए यह प्रयास अत्यंत आवश्यक है। तिलोई से ज़्यादा समृद्ध इतिहास, सांस्कृतिक और साहित्यिक माहौल बनाने के लिए हो ही नहीं सकता।
तिलोई रियासत का महत्व
तिलोई रियासत का सांस्कृतिक, साहित्यिक और आध्यात्मिक महत्व इसे एक विशिष्ट स्थान पर रखता है। यहां की सांस्कृतिक धरोहर, साहित्यिक योगदान और आध्यात्मिक वातावरण ने इसे एक विशेष पहचान दी है। तिलोई रियासत का सांस्कृतिक, साहित्यिक और आध्यात्मिक महत्व न केवल अवध प्रान्त में बल्कि पूरे भारत में प्रसिद्ध है।
तिलोई रियासत के राजाओं का योगदान
तिलोई रियासत के राजाओं ने हमेशा से ही सांस्कृतिक, साहित्यिक और आध्यात्मिक महत्व को बढ़ावा दिया है। राजा पशुपतिनाथ शरण सिंह, राजा बहादुर मोहन सिंह और राजा मयंकेश्वर शरण सिंह ने इस रियासत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। यह का सांस्कृतिक, साहित्यिक और आध्यात्मिक महत्व इनके योगदान से और भी प्रखर हो गया है।
नवगजी कब्र और तिलोई रियासत का आध्यात्मिक महत्व
तिलोई रियासत का सांस्कृतिक, साहित्यिक और आध्यात्मिक महत्व नवगजी कब्र के कारण भी बढ़ जाता है। जायस कस्बे की यह कब्र यहाँ के आध्यात्मिक इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा है। मलिक मोहम्मद जायसी और गुरु गोरखनाथ जी की भूमि के रूप में यह का सांस्कृतिक, साहित्यिक और आध्यात्मिक महत्व और भी विशेष हो जाता है।
तिलोई रियासत का वर्तमान स्वरूप
वर्तमान में यह का सांस्कृतिक, साहित्यिक और आध्यात्मिक महत्व बरकरार है। राजा मयंकेश्वर शरण सिंह जी के नेतृत्व में यह रियासत आज भी अपने गौरवशाली इतिहास को संजोए हुए है। तिलोई रियासत का सांस्कृतिक, साहित्यिक और आध्यात्मिक महत्व आज भी उसी तरह प्रखर है जैसे पहले था।
एक नज़र
यह का सांस्कृतिक, साहित्यिक और आध्यात्मिक महत्व इस रियासत की हर धरोहर में झलकता है। चाहे वह तिलोई महल हो, जायस कस्बा हो, नवगजी कब्र हो या यहां के राजा हों, तिलोई रियासत का सांस्कृतिक, साहित्यिक और आध्यात्मिक महत्व हर जगह महसूस किया जा सकता है।
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