कुछ रचनाएं दिल के बहुत करीब होती हैं। अमृता प्रीतम की पंजाबी कविता “अज आँखा वारिस शाह नूं” मेरे दिल के इतने करीब है कि जब पढ़ती हूं, आंख से आंसू बहते हैं। इस कविता में 1947 के भारत-पाक विभाजन के समय हजारों बेटियों के साथ हुए अमानवीय व्यवहार और उनके दर्द को उन्होंने अपने शब्दों में ऐसे ढाला कि आज भी किसी बेटी के साथ कुछ भी बुरा होता है तो यही पंक्तियां याद आती हैं।
👆🏾मूल पंजाबी कविता का पाठ मेरे द्वारा सुनें।
विभाजन और स्त्रियों की वेदना
अमृता प्रीतम की यह कविता विभाजन के समय की भयावहता को दर्शाती है। विभाजन ने हजारों परिवारों को तोड़ा और महिलाओं पर अत्याचार किए गए। अमृता प्रीतम ने इस दर्द को इतनी खूबसूरती से बयां किया कि यह कविता आज भी दिल को छू जाती है।
वारिस शाह का आह्वान
अमृता जी ने इस कविता में वारिस शाह को उनकी कब्र से बोलने का आह्वान किया। पंजाबी कवि वारिस शाह (1722-1798) ने मशहूर पंजाबी प्रेमकथा ‘हीर रांझा’ का सबसे प्रसिद्ध प्रारूप लिखा था। अमृता प्रीतम ने इस कविता में वारिस शाह को संबोधित करते हुए लिखा है। उनकी आवाज में पंजाब की हजारों स्त्रियों की वेदना शामिल थी।
हीर रांझा और विभाजन का दर्द
एक हीर के रोने पर गाथा लिखने वाले वारिस शाह जब विभाजन के समय पंजाब की हजारों बेटियों के रोने पर भी नहीं बोले तो अमृता ने उन्हें अपनी कब्र से बोलने का आह्वान किया। इस तरह की पुकार सिर्फ अमृता जैसी रचनाकार ही कर सकती थी। इस पुकार ने अमृता प्रीतम के कद को बहुत ऊंचा उठा दिया।
कविता का असर
आप सबने जरूर ही सुना होगा इस कविता को। इसका मूल पंजाबी रूप आज प्रस्तुत कर रही हूं। पंजाबी भाषा जो लोग नहीं जानते, उन्हें भी इसके एक-एक शब्द का दर्द महसूस होगा। मैंने दक्षिण के राज्य तेलंगाना में, जहां पंजाबी हिंदी कोई भी नहीं समझ पाता था, वहां एक कार्यक्रम में इस कविता का अर्थ बताते हुए पाठ किया। हर आंख नम थी और सबने बहुत ध्यान से सुना।
अमृता प्रीतम का साहित्यिक योगदान
अमृता प्रीतम का साहित्यिक योगदान अविस्मरणीय है। उनकी रचनाओं में हमेशा समाज की सच्चाई और दर्द का अक्स देखने को मिलता है। उनकी कविता “अज आँखा वारिस शाह नूं” इस बात का प्रमाण है कि कैसे एक लेखक समाज की वेदना को शब्दों में पिरो सकता है।
पंजाबी प्रेमकथा की विरासत
अमृता प्रीतम की रचनाओं में पंजाबी प्रेमकथाओं की गहरी छाप दिखाई देती है। उन्होंने वारिस शाह की ‘हीर रांझा’ जैसी प्रेमकथा को एक नया दृष्टिकोण दिया और इसे विभाजन के दर्द से जोड़ा। उनकी रचनाएं सिर्फ प्रेम की कहानियां नहीं, बल्कि सामाजिक मुद्दों को भी उजागर करती हैं।
साहित्यिक प्रेरणा
अमृता प्रीतम की रचनाएं हमें साहित्य की ताकत का एहसास कराती हैं। उनकी मर्मस्पर्शी कविताएं और कहानियां हमें प्रेरित करती हैं कि हम भी समाज की सच्चाई को स्वीकारें और उसे बदलने की कोशिश करें। उनकी कविताएं हमें सिखाती हैं कि दर्द को शब्दों में ढालना एक कला है और यह कला समाज को जागरूक करने का सबसे प्रभावी तरीका है।
अंतर्दृष्टि और संवेदनशीलता
अमृता प्रीतम की कविताओं में अंतर्दृष्टि और संवेदनशीलता का गहरा मेल है। उन्होंने अपने अनुभवों और समाज की सच्चाई को इतनी खूबसूरती से शब्दों में ढाला कि उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं। उनकी कविता “अज आँखा वारिस शाह नूं” इसका उत्कृष्ट उदाहरण है।
सांस्कृतिक धरोहर
अमृता प्रीतम की रचनाएं हमारी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं। उनकी कविताएं और कहानियां हमें हमारी जड़ों से जोड़ती हैं और हमें हमारी सांस्कृतिक पहचान का एहसास कराती हैं। उनकी रचनाओं में हमें हमारी संस्कृति, समाज और उसके विभिन्न पहलुओं का अक्स देखने को मिलता है।
निष्कर्ष
अमृता प्रीतम की “अज आँखा वारिस शाह नूं” सिर्फ एक कविता नहीं, बल्कि विभाजन के दर्द और स्त्रियों की वेदना का सजीव चित्रण है। यह कविता हमें यह सिखाती है कि साहित्य की शक्ति कितनी बड़ी हो सकती है और कैसे एक रचनाकार समाज की सच्चाई को उजागर कर सकता है। अमृता प्रीतम का साहित्यिक योगदान हमें हमेशा प्रेरित करता रहेगा और उनकी रचनाएं हमारे दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगी।